Shanti Swaroop Mishra

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Majboori par hansa mat karo

किसी की मजबूरियों पर, हंसा मत करिये
यूं बेसबब झूठे गरूर का, नशा मत करिये

कुछ भी पता नहीं इस वक़्त की नज़रों का,
खुद को ख़ुदा समझने की, खता मत करिये

बदवक़्त कभी कह कर नहीं आता है दोस्त,
कभी खुद के बुने जालों में, फंसा मत करिये

जिसने बिठाया था जमीं से फलक पर तुम्हें,
उन्हें बन के कभी विषधर, डसा मर करिये

ज़रुरत है उल्फत की जिस बीमार दिल को,
कभी नफ़रतों से उसकी, शिफ़ा मत करिये

अजब सी दुनिया में अजब से रिश्ते हैं "मिश्र",
कभी अपनों की बात पर, गिला मत करिये

Main Khamosh Hun Lekin

मैं खामोश हूँ लेकिन, मैं भी जुबाँ रखता हूँ !
लोगों के छोड़े तीर, दिल में जमा रखता हूँ !

न समझो कि न आता मुझे जीने का सलीका,
मैं पैरों तले जमीन, मुट्ठी में आसमाँ रखता हूँ !

मैं उडता हूँ आसमानों में बस बेख़ौफ़ हो कर,
मगर जमीं नीचे है, मैं इसका गुमां रखता हूँ !

कोई बाहर के अंधेरों से क्या डरायेगा मुझको,
मैं तो वास्ते रौशनी के, दिल में शमा रखता हूँ !

ज़िन्दगी के खेल में कल हों न हों ये क्या पता,
पर जीतने की ख्वाहिशें, मैं खामखाँ रखता हूँ !

Kitna Matlabi Hai Zamana

कितना मतलबी है जमाना, नज़र उठा कर तो देख
कोंन कितना है तेरे क़रीब, नज़र उठा कर तो देख

न कर यक़ीं सब पर, ये दुनिया बड़ी ख़राब है दोस्त,
आग घर में लगाता है कोंन, नज़र उठा कर तो देख

भला आदमी के गिरने में, कहाँ लगता है वक़्त अब,
कोई कितना गिर चुका है, नज़र उठा कर तो देख

क्यों ईमान बेच देते हैं लोग, बस कौड़ियों में अपना,
कितना बचा है ज़मीर अब, नज़र उठा कर तो देख

शौहरत की आड़ में, खेलते हैं कितना घिनोंना खेल,
हैं कहाँ बची अब शराफ़तें, नज़र उठा कर तो देख

जो हांकते हैं डींगें, औरों का भला करने की दोस्त,
कितने सच्चे हैं वो दिल के, नज़र उठा कर तो देख

तू समझता है सब को ही अपना, निरा मूर्ख है "मिश्र",
कितने कपटी हैं अब लोग, नज़र उठा कर तो देख

KIsmat Ke Taar Bikhre Hain

बिखरे हैं किस्मत के तार, न जाने कहाँ कहाँ !
भटकते रहे हम तो बेकार, न जाने कहाँ कहाँ !

बदलते रहे रास्ते हमतो मंज़िल की तलाश में,
मगर पहुंचा दिया हर बार, न जाने कहाँ कहाँ !

आये थे इस शहर में कुछ पाने की ललक में,
मगर यूँही होते रहे लाचार, न जाने कहाँ कहाँ !

ज़िन्दगी तो खेल है मगर आसां नहीं है इतना
जीत कर भी मिलती है हार, न जाने कहाँ कहाँ !

मत समझो "मिश्र" दुनिया को फूलों का चमन,
अब तो फैले हैं कांटे बेशुमार, न जाने कहाँ कहाँ !

Tazurbe Achhe Nahi Hain

दोस्तो कानों के हम भी,कच्चे नहीं हैं !
मगर तज़ुर्बे हमारे, कुछ अच्छे नहीं हैं !

बजा कर झुनझुने फुसलाते हैं हमको,
कोई बताये उन्हें कि, हम बच्चे नहीं हैं !

सब समझते हैं हम चालाकियां उनकी,
सच ये है कि दिल के, वो सच्चे नहीं हैं !

फंसाते हैं किस कदर लोगों को झांसे में,
दिखते तो हैं भोले मगर, वो वैसे नहीं हैं !

वादों की पोटली ले कर आते हैं जब तब,
पर वादों के असर, कभी दिखते नहीं हैं !

लूटते हैं जनता को बड़े ही ढंग से "मिश्र",
फिर भी कहते हैं वो, कि उचक्के नहीं हैं !


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