उनके बिन ये घर मेरा, वीरान बन कर रह गया
मेरे दिल का हर कोना, सुनसान बन कर रह गया
कभी उनके प्यार से जगमग थीं यहाँ महफिलें,
आज वो बस अंधेरों का, सामान बन कर रह गया
ख़्वाब बन कर रह गयीं गुलशन की वो खुशबुएँ,
दिल मेरा बिन फूल का, गुलदान बन कर रह गया
मेरा तो बस नाम था, कभी उनके ही नाम से,
उनके बिन अब नाम भी, बे नाम बन कर रह गया
हर वक़्त रहते थे हम जिनके चेहरे की चमक में,
अब उनका दीदार तो बस, अरमान बन कर रह गया

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