यारा कहाँ गयी वो बात, वो ज़िंदा दिली तेरी
कैसे हुई ग़मों से बोझिल, प्यारी सी हंसी तेरी
कैसे हुआ मैला पूनम का ये चाँद या ख़ुदा,
मुझे क्यों लगती है धुंधलकी, ये चांदनी तेरी
तेरे हुश्न का तलबगार था कभी हर दीवाना,
क्यों रहने लगीं हैं ये महफ़िलें, अब सूनी तेरी
रुसबा हुए थे एक दिन हम भी तेरी गली में,
अक्सर याद आती है, उस दिन की बेबसी तेरी
हम वो फूल हैं जो खिलते हैं खिज़ाओं में भी,
ये दिल चाहता है देखना, बस चेहरे पे ख़ुशी तेरी...

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