इस #दिल में, मोहब्बत की शमा जलती रही ,
यादों का बोझ लिए, ये ज़िन्दगी चलती रही !
आता रहा जलजला ज़माने भर का लेकिन,
बस टकराते रहे उस से, और उम्र ढलती रही !
उम्र भर सताता रहा फरेबियों का काफ़िला,
पर ख़ुदा के फज़ल से, जान बस बचती रही !
गर्दिशे दौरां में न पकड़ा बाजू किसी ने मगर,
दरिया ए ग़म से, ज़िंदगी बस निकलती रही !
यही है फ़साना तमाम #ज़िन्दगी का,
कभी ये ऊपर चढ़ी, तो कभी बस गिरती रही !

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