मोहब्बत के नाम से डर गया हूँ मैं
अपनी ही नज़रों में गिर गया हूँ मैं
बेवफाई का जिक्र क्या करना "मिश्र"
हसीनों के मेले से गुज़र गया हूँ मैं
न वो दिल रहा न प्यार का जुनून
अब ठोकरें खाकर सुधर गया हूँ मैं
न आँसूं न ग़म न लटका हुआ चेहरा
इश्क़ की आफतों से उबर गया हूं मैं...

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