नेताओं को जनता में, बस वोट नज़र आती है,
जनता तो पागल है, बस ये सोच नज़र आती है!
खुद को बताते हैं वो दूध के धुले हुए मगर,
अपने हर विपक्षी में, उन्हें खोट नज़र आती है !
गलती से पूंछता है उनके मंसूबों को गर कोई,
तो उनके मुखौटों पर, गहरी चोट नज़र आती है !
जनता से माँगना है तो दिलों को साफ़ रखिये,
उसको तुम्हारे अभिनय में, खोट नज़र आती है !
उतार कर मुखौटे दिखा दो उसे असली चेहरा,
मिट जाएगी दिलों से वो, जो लोच नज़र आती है !