ढूंढते हैं जिसे हसरतों से, वो प्यार नहीं मिलता,
खार मिलते हैं मगर, गुले गुलज़ार नहीं मिलता
इस दुनिया में मिल जाती है ढूंढने से हर चीज़,
मगर दिल में बस जाये, वो शाहकार नहीं मिलता
ढूंढ लेता है आदमी खुशियाँ औरों के आँगन में,
मगर अफ़सोस, उसे अपना परिवार नहीं मिलता
खुदाया क्या गज़ब है कि माँ भी बाँट दी लोगों ने,
अपने ही घर में उसे, कोई अधिकार नहीं मिलता
खुद भूखी रह कर पाला था जिन बेटों को उसने,
आज अपने ही घर में, भर पेट आहार नहीं मिलता
शर्म आती है मुझे जब देखता हूँ ऐसे वाकये दोस्त,
कैसे बदलेगी ये दुनिया, कोई उपचार नहीं मिलता...

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