ये ज़िन्दगी ऐसी भी होगी, ये कभी सोचा न था
हो जाएंगे यूं अपने पराये, ये कभी सोचा न था
कभी इठलाती थीं तितलियाँ गुलशन में मेरे,
खा जाएँगी उसको खिज़ाएँ, ये कभी सोचा न था
जाते हुए पैरों की आहटें सुनते रहे हम गुमसुम,
न देखेगा एक बार मुड़ कर, ये कभी सोचा न था
क्या होती है हद ज़फ़ाओं की पता न था हमको,
पर बन जायेगा वो अजनबी, ये कभी सोचा न था
बिना लिबास आये थे हम इस दुनिया में "मिश्र",
उस की चाह में इतना सफर, ये कभी सोचा न था...

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