ये कुर्सी का चस्का ऐसा जो सबको ही लग जाता है
छोड़ छाड़ सब धर्म कर्म उसके पीछे लग जाता है
जो धूनी अलघ जगाते थे वो भी इसके दीवाने हैं
जो अल्लाह की खिदमत में थे वो भी इसके दीवाने हैं
आम आदमी मूरख बन कर इनका साथ निभाता है
कुर्सी जब मिल जाती है तो उसको ही आंख दिखाता है
कालिज का जिसने मुंह नहीं देखा वो मंत्री बन जाता है
पढ़े लिखों का आका बनकर उन पर रौब जमाता है
यौवन बीता आया बुढ़ापा पर फिर भी कुर्सी प्यारी है
इसे लोकतंत्र कहते हैं भाई इसकी तो महिमा न्यारी है

Leave a Comment


Notice: ob_end_clean(): Failed to delete buffer. No buffer to delete in /home/desi22/desistatus/view.php on line 331
0