हैं करम उनके दोषी मगर, तक़दीर को दोष देते हैं
वो बोते हैं खुद बबूल मगर, जमीन को दोष देते हैं
न झांकता है कोई भी अब गिरेवां आजकल अपना
करते हैं क़त्ल खुद ही मगर, औरों को दोष देते हैं
चालाकियां दौड़ती हैं रगों में आदमी के अब दोस्त
कमाल है कि अब तो, चोर भी शाह को दोष देते हैं
कौन ऐसा है इस दुनिया में जो दोषी न हो,
पर खुद को बताकर शरीफ, ज़माने को दोष देते हैं...

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