बिना रंजोगम के, ज़िन्दगी का मज़ा क्या होता
अगर न होती हार, तो जीत का मज़ा क्या होता
वही जानता है गुज़रती है जिसके दिल पे मगर,
न टूटते दिल, फिर मोहब्बत का मज़ा क्या होता
चाहत है सबको ही अपनी मंज़िल पाने की मगर,
न होते राह में कांटे, तो सफर का मज़ा क्या होता
ज़िन्दगी तो बस चाहतों का इक झमेला है,
न होती ये ख्वाहिशें, तो सपनों का मज़ा क्या होता !!!

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