मुझे तो हर तरफ, सिर्फ अँधेरा नज़र आता है,
ज़िंदगी का हर रंग, अब बदरंग नज़र आता है !
कभी गुज़रती थी सुबह ओ शाम बहारों में जहां,
अब वो गुलशन भी, मुझे वीरान नज़र आता है !
तसल्लियों के भरोसे कैसे जीते हैं लोग आखिर,
हमें तो हर पल, ये जमाना बेदर्द नज़र आता है !
ये दिल्लगी भी जाने क्या गुल खिलाती है यारो,
अच्छा भला सा आदमी, पागल सा नज़र आता है !
कितना भरा है #ज़हर दुनिया के लोगों में,
जब निकलता है वो, आदमी शैतान नज़र आता है !

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