कुछ तन्हा सा गुमसुम सा, यूं ही पड़ा रहता हूं
तब काम का जुनून था, अब बेकाम पड़ा रहता हूं
जिंदगी के आखरी दिन इतने बोझिल होते हैं,
बेवजह की अपनी सोच पर, यूं ही अड़ा रहता हूं

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