Shanti Swaroop Mishra

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Meri aadat nahi hai

किसी से बहस करना, मेरी आदत नहीं है
बेकार उलझते फिरना, मेरी आदत नहीं है
यहाँ कैसे जी रहा हूँ कोई मेरे दिल से पूंछे,
मेरी ज़िन्दगी है यारो, कोई सियासत नहीं है
अगर सीधी भी हों राहें तो भी क्या फायदा,
न मिलेगी मंज़िल,गर दिल में ताकत नहीं है
मैं भी चाहता हूँ मोहब्बत की ज़िन्दगी यारो,
मेरी तो यूं भी किसी से, कोई अदावत नहीं है
ज़रा बच के रहना रहनुमाओं के मुखौटों से,
खुदा खैर करे यहां, कुछ भी सलामत नहीं है
बदल चुकी हैं अपने वतन की फ़िज़ाएं यारो,
यहाँ सच कहने की अब तो, इज़ाज़त नहीं है
इस ज़रा सी ज़िंदगी में बवाल कितने हैं,
यहाँ तो मरने के बाद भी, अब मोहलत नहीं है...

Sath kab tak rahega

आखिर सांसों का साथ, कब तक रहेगा !
किसी का हाथों में हाथ, कब तक रहेगा !
बस यूं ही डूबते रहेंगे चाँद और सूरज तो,
आखिर रोशनी का साथ, कब तक रहेगा !
अगर जीना है तो चलना पड़ेगा अकेले ही,
आखिर रहबरों का साथ, कब तक रहेगा !
न करिये काम ऐसे कि डूब जाये नाम ही,
आखिर सौहरतों का साथ, कब तक रहेगा !
कभी तो ज़रूर महकेगा उल्फत का चमन,
आखिर ख़िज़ाओं का साथ, कब तक रहेगा !
तुम भी खोज लो ’ ख़ुशी के अल्फ़ाज़,
आखिर रोने धोने का साथ, कब तक रहेगा !

Apno se dar lagta hai

हमें परायों से नहीं, अपनों से डर लगता है
हमें तो सच से नहीं, सपनों से डर लगता है
दिल में चाहत के तूफ़ान तो बहुत हैं मगर,
हमें तो बनावटी, मोहब्बतों से डर लगता है
हमने देखा है बहुत कुछ ज़िंदगी में यारो,
हमें शातिरों से नहीं, शरीफों से डर लगता है
जाने कितने किरदार देखे हैं उम्र भर हमने,
हमें चाशनी में पगी, बातों से डर लगता है
अब न दिखता है कोई मेल चेहरे का दिल से,
हमें दिल में उमड़ते, ज़हरों से डर लगता है
चाहत तो हमारी भी है सितारे छूने की मगर,
हमें आसमां से नहीं, खजूरों से डर लगता है
न समझ लेना ये कि हम तो कायर हैं "मिश्र",
हमें तो शेरों से नहीं, सियारों से डर लगता है

Teri Raah Takte Takte

तकते तकते राह तेरी, यारा शाम हो गयी
आँखों की रौशनी भी, अब तमाम हो गयी
न दिखी कोई मूरत हमें, दूर दूर तलक भी,
मुफ्त में अपनी मोहब्बत, बदनाम हो गयी
लोग हँसते रहे देख कर, यूं तड़पना हमारा,
पर ये ज़िन्दगी फिर भी, तेरे नाम हो गयी
अभी सताना है कितना, बस बता दे इतना,
अब तो ये जुबाँ भी हमारी, बेजुबान हो गयी
हम भी जानते थे कि, मोहब्बत खेल नहीं है,
न जाने कितनों की ज़िंदगी, क़ुर्बान हो गयी
यादों के पन्ने ही, बस पलटते रह गए,
पर उधर उल्फ़त की बगिया, वीरान हो गयी

Hum Aashiqui Samajh Baithe

वो मुस्कराये क्या, कि हम आशिक़ी समझ बैठे,
हम तो मौत के सामान को, ज़िन्दगी समझ बैठे

ये ख़ुदा का कुफ्र था, या फिर नादानियाँ हमारी,
कि धुप अंधेरों को यारो, हम चांदनी समझ बैठे

न समझ पाए हम, उसके अंदर भड़कते शोर को,
उसके राग खुन्नस को, हम रागिनी समझ बैठे

इसे हम वक़्त की मार कहें, या फिर बदनसीबी,
कि पत्थर की मूरत को, हम महजबीं समझ बैठे

वाह क्या ही अक्ल पायी है, परखने की हमने भी,
कि हलाहल की बूंदों को, हम चाशनी समझ बैठे

बड़ा ही शातिर बहुरूपिया, निकला वो तो "मिश्र",
कि उस कपटी मुखौटे को, हम सादगी समझ बैठे


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