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किसी को आखिर
हम भुलाएँ कैसे,
किसी को बे सबब
हम रुलायें कैसे !
झूठे सपने दिखाना नहीं आता
हमें,
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चेहरे पे ग़म, दिल में रुसबाइयां दे गया कोई !
जाते जाते भी, आँखों में रुलाइयां दे गया कोई !
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कुछ अलग से, काम करने की आदत है
हमें,
हर ज़ुल्म को, हंस के सहने की आदत है
हमें !
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बस इतनी सी बात पर
हमारा परिचय् तमाम होता है...
हम उन रास्तो पर नहीं चलते
जो रास्ता आम होता है !!!
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हम तो उस आदमी को, यूं ही इंसान समझ बैठे,
उसकी मोहब्बत को ही, अपना ईमान समझ बैठे !
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यारा कहाँ गयी वो बात, वो ज़िंदा दिली तेरी
कैसे हुई ग़मों से बोझिल, प्यारी सी हंसी तेरी
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गलतफ़
हमी की इंतहा तो देखो :-
पत्नी, पति से नाराज़ होकर
बात नहीँ कर रही और सोचती है
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दिल को मनाने में, ज़रा मुश्किल तो होती है,
किसी को भुलाने में, ज़रा मुश्किल तो होती है !
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कहाँ से चले थे मगर कहाँ आ गए,
हम संभलते संभलते
खुद को ही बदल डाला
हमने, दुनिया को बदलते बदलते
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कई चेहरे लेकर लोग यहाँ जिया करते हैं,
हम तो बस एक ही चेहरे से #प्यार करते हैं,
ना छुपाया करो तुम इस चेहरे को,
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