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ढूंढते हैं जिसे हसरतों से, वो प्यार नहीं मिलता,
खार मिलते हैं मगर, गुले गुलज़ार नहीं मिलता
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कुछ लोगों को, बस कमियां गिनने की आदत होती है,
दूसरों के
घर में, झाँक कर निकलने की आदत होती है !
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चाकू से पेड़ पर जानू का नाम
गोदने से अच्छा है
कि एक पेड़ अपनी जानू के
घर के सामने लगाया जाए
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चाहे दरकीं हैं दीवारें, मगर
घर अभी बाक़ी है
हालात बदले हों भले ही, असर अभी बाक़ी है
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दोस्त – तेरी बीवी ने तुझे
घर से क्यों निकाला,
पप्पू– साले तेरे कहने पर
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ये तो अच्छा हुआ कि
1947 में #WhatsApp और #Facebook नहीं था,
वरना आज़ादी के लिए कोई जंग में उतरता ही नहीं,
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दुनिया के दिए ज़ख्मों के, निशान अभी बाकी हैं,
हम जी रहे हैं इसलिए कि, अरमान अभी बाकी हैं !
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कंकरीली राहों की कशक, आज भी ताज़ा है,
गरम रेत की वो तपिश, आज भी ताज़ा है !
फटी बिबाइयों का वो कशकता खामोश दर्द,
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नाज हमें है उन वीरों पर,जो मान बड़ा कर आये हैं
दुश्मन को घुसकर के मारा,शान बड़ा कर आये हैं...
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मकां तो मिलते हैं मगर, कोई भी
घर नहीं मिलता !
अब ईंट और गारे में, दिलों का असर नहीं मिलता !
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