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लाख टके की
बात –
कोई नही देगा साथ तेरा यहाँ,
हर कोई यहॉं खुद ही में मशगुल है
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ज़रा सी तेज़ हवा को, तूफ़ान मत समझो
वक़्त के मारों को, बे ईमान मत समझो
अपने अंदर भी झांक कर देख लो कुछ,
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क्या कहूँ और कैसे कहूँ,
कि मैं क्या #लिखता हूँ..
हर #व़क्त के हर #लम्हें में,
नये #अल्फ़ाज लिखता हूँ...
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एक ज़िन्दगी थी, वो भी तन्हा हो गयी
जीने की #तमन्ना, न जाने कहाँ खो गयी
#दिल था अपना वो भी बे वफ़ा हो गया,
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पूरी जिंदगी हम इसी
बात में गुजार देते हैं कि -
"लोग क्या कहेंगे"
और अंत में चार लोग बस यही कहते हैं कि -
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किसी के #ज़ज्
बातों का #मज़ाक,
हम किया नही #करते...
किसी की #ज़िन्दगी से खिलवाड़,
हम किया नही करते...
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क्या कहूँ उन #लोगों को, जिन्होंने मेरा #साथ छोड़ दिया,
क्यूँ छोटी सी #
बात पर उन्होंने, मेरा #हाथ छोड़ दिया...
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उतार चढ़ाव तो हर शख्स की
#जिन्दगी में आता है....
जो #सम़झ सके इस
बात को
वही #इन्सान कहलाता है...
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मुझ पे सुधरने का यारो हर इक जादू मुश्किल है ,
चन्दन हो तो
बात बने नीम से खुशबू मुश्किल है ...
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जीने से तो यहाँ बेहतर है कि, बस मर जाएँ
मिलते हैं ग़मों से बुझे चहरे, हम जिधर जाएँ
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