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मूर्खता के इस पावन पर्व
और पवित्र त्यौहार पर
मूर्खों के सरताज को
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एक लड़का एक नाई की दुकान में गया और नाई ने अपने ग्राहक से फुसफुसाते हुए कहा,
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बड़े नादान हैं लोग जो लोगों से वफा की उम्मीद कर लेते हैं
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मूर्ख है दीपक, जो खुद को जलाता है जमाने के लिये
खुद को मिटा देता है, औरों का अंधेरा मिटाने के लिये
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मूर्ख थे हम कि उसको, अपना समझ लिया हमने
उसकी हर चीज़ पर, अपना हक़ समझ लिया हमने
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क्या गुज़री है दिल पर, कौन समझता है
किसी और का दर्द, भला कौन समझता है
खो गए गमों की भीड़ में मेरा #नसीब था,
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उतार चढ़ाव तो हर शख्स की
#जिन्दगी में आता है....
जो #सम़झ सके इस बात को
वही #इन्सान कहलाता है...
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चोर (बन्दूक तानते हुए): ज़िन्दगी चाहते हो
तो अपना पर्स मेरे हवाले कर दो।
आदमी: यह लो।
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न बची जीने की चाहत तो मौत का सामान ढूंढता है,
क्या हुआ है दिल को कि कफ़न की दुकान ढूंढता है
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दिल में घुसते हैं लोग कैसे, अब समझ आया ,
मुखौटे बदलते हैं लोग कैसे, अब समझ आया !
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