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Shanti Swaroop Mishra
Zindagi kabhi Phool Kabhi Kaante
ज़िंदगी कभी फूलों का हार नज़र आती है
तो कभी ये कांटों का ताज़ नज़र आती है
कभी लगती है जैसे संगीत की मधुर लहरी,
तो कभी बिना सुरों का साज़ नज़र आती है
कहीं दिखती है अमीरों के ठाठों में बेसुध,
कहीं कंगाल के चूल्हे की राख नज़र आती है
कभी मज़दूर के पसीने में झलकती है वो,
तो कभी बे- ईमानों के साथ नज़र आती है
कभी हंसती मुस्कराती है अपनों के बीच,
तो कभी यूं ही गैरों के साथ नज़र आती है
Sath kab chhoot jaye kisko pata
ये शीशा ये सपना ये ज़िंदगी की डोर
कब टूट जाएं ये किसको पता है
मोहब्बत के दरिया में ज़फ़ा की कस्ती
कब डूब जाये ये किसको पता है
झूठ की नींव पर बहुत बनते हैं रिश्ते
कब टूट जायें ये किसको पता है
छोटी सी ज़िंदगी में भर दो हर खुशी
कब रूठ जाये ये किसको पता है
दिल में बसा लो अपने बुज़ुर्गों का साया
साथ कब छूट जाये किसको पता है...
Yehi Zindagi ka mantar hai
ज़िंदगी जीनी है तो, घर से निकल कर देखो
कुछ धूल फांको, कुछ धूप में चल कर देखो
बेजान पत्थर भी तड़पते हैं ज़िंदगी के लिये,
उन्हें अपने दर ओ दीवार में, लगा कर देखो
गुलशन में लगा फूल मुस्कराता है रात दिन,
डाली से टूट कर वो कैसे हंसे, सोच कर देखो
ये ज़रा सी ज़िंदगी सब को जीने का हक़ है,
पर क्यों अज़ाब देते हैं हम, विचार कर देखो
खुद भी जियो औरों को भी जीने दो दोस्तो,
यही #ज़िंदगी का मंत्र है, ज़रा समझ कर देखो
Mohabbat dil ki dva ban jati hai
मोहब्बत की हवा दर्द ए दिल की दवा बन जाती है
प्यार गर करीब हो तो ख़िज़ां भी फिज़ां बन जाती है
कोई कैसे भूल सकता है ज़िंदगी के हसीन लम्हों को
पर फक़त यादों के सहारे जीना भी सज़ा बन जाती है...