आज कल हर गली में वोटों के भिखारी निकल पड़े हैं
कुटिल राजनीति के मझे हुए खिलाडी निकल पड़े हैं
गलतियों का दोष औरों पर मढने का जो चलन है
उसे निभाने के लिये बहुत से अनाड़ी निकल पड़े हैं
जनता को वो झूठे वादे अब फिर से मिलने वाले हैं
हम जनता के सेवक हैं झांसे फिर से मिलने वाले हैं
दुनिया की सारी सुख सुबिधायें अब जनता की हैं
सावधान जनता अब वोटों के भिक्षुक मिलने वाले हैं
मैं फूलों का नहीं कांटों का एहतराम करता हूँ
फ़ितरत है चुभने की फिर भी सलाम करता हूँ
फूलों का क्या भरोसा वो मुस्कराएं कब तक,
सो ज़िंदगी भर की चुभन का इंतज़ाम करता हूँ...
अगर ठोकर लगती है तो रास्तों को दोष देते हैं
खिलाडी हार जाते हैं तो निर्णय को दोष देते हैं
डूबते हैं गलती से लेकिन दरिया को दोष देते हैं
नाकारा लोग तो अपनी किस्मत को दोष देते हैं
गलती सन्तान करे लोग मां बाप को दोष देते हैं
काम बिगड जाता है तो हालात को दोष देते हैं
अपने दिलों में कभी झांक कर नहीं देखते हम
गलती खुद करते हैं पर दूसरों को दोष देते हैं...
प्यार ने हमें जीना सिखा दिया, मरना सिखा दिया
दुनिया के हर दर्द को, सीने में छुपाना सिखा दिया
मोहब्बत का दुश्मन रहा है ये जमाना,
पर मोहब्बत ने हमको, जमाने से लड़ना सिखा दिया
भोले चेहरे पर मिटकर खुद को उनका दास बना दिया
गलत फहमी थी कि उसने जिंदगी को खास बना दिया
बड़ा ही बेवफा निकला उनका फरेबी चेहरा,
मेरी हरी भरी जिंदगी को मिटाकर सूखी घास बना दिया