Dil ke kareeb laun kaise
तरक़ीब तो बता ए दिल मैं उसे मनाऊँ कैसे
क्या करूं कैसे करूं उसे तेरे करीब लाऊं कैसे
उसकी जो धड़कन धडकती है तेरे अंदर
अब तू ही बता ये अहसास उसको कराऊँ कैसे...
तरक़ीब तो बता ए दिल मैं उसे मनाऊँ कैसे
क्या करूं कैसे करूं उसे तेरे करीब लाऊं कैसे
उसकी जो धड़कन धडकती है तेरे अंदर
अब तू ही बता ये अहसास उसको कराऊँ कैसे...
शहर की चका चोंध में, सब कुछ भुला दिया हमने
मिट्टी का वो घर, वो आँगन, सब भुला दिया हमने
मां की सुनाई लोरियां भी हमें याद नहीं अब,
इस शहर के शोर में, मां का प्यार भुला दिया हमने
जिंदगी का ताना बाना, न जाने क्यों उलझ जाता है
मैं एक छोर ढूढता हूँ, तो कहीं दूजा खिसक जाता है
सच कहा है किसी ने कि जीना आसान नहीं,
हम तो क्या, जमीं पर आकर भगवान भटक जाता है
वो समझते हैं कि मैं उनसे प्यार नहीं करता
औरों की तरह मैं उनकी मनुहार नहीं करता
कैसे बताऊँ कि और भी ग़म हैं जमाने में,
मैं औरों की तरह दिखावे का प्यार नहीं करता
प्यार का रोग ही ऐसा है जिसकी दवा नहीं होती
ये वो प्यारा सा गुनाह है जिसकी सज़ा नहीं होती
ये तो दो दिलों का युद्ध है यारो,
तब तक चलता है जब तक दोनों में रज़ा नहीं होती