कभी मेरी हकीकत भी एक कहावत बन जाएगी
आवाज़ भी इन हवाओं की अमानत बन जाएगी
राख के ज़र्रे मेरी याद में भटकेंगे इधर उधर
अस्थियाँ किसी दरिया की अमानत बन जाएंगी
मेरी फोटो भी एक दिन दीवार पर लटक जायेगी
उस पर एक अदद माला भी शायद लटक जाएगी
कुछ दिनों तक फूलों की खुश्बू आती रहे शायद
पर एक दिन हर पंखुड़ी सूख कर सिमट जाएगी
जो पास हैं उसकी कोई बात नहीं करता
सिर्फ दूर वालों की याद आती है
घर की मुर्गी की कोई कद्र नहीं करता
सिर्फ गैरों की मुर्गी याद आती है
पिंजड़े के परिंदे की बात कोई नहीं करता
जो उड़ गया सिर्फ उसकी याद आती है
ज़िंदगी की उलझनों में, कुछ ज्यादा ही मशगूल हो गये
जिनको दिल के करीब समझा, वो भी प्रतिकूल हो गये
ये ज़िंदगी भी क्या क्या दिन दिखाती है,
फूलों सी जिंदगी दी जिनको, उनके लिये हम सूल हो गये...
सज्जन दौड़ रहा है इज़्ज़त बनाने के लिये
तो दुर्जन दौड़ रहा है कुचक्र चलाने के लिये
कुछ लोग दौड़ रहे हैं रोटी कमाने के लिये
कुछ लोग दौड़ रहे हैं रोटी पचाने के लिये
चोर दौड़ रहा है कहीं माल छिपाने के लिये
तो सिपाही दौड़ रहा है फ़र्ज़ दिखाने के लिये
कोई दौड़ रहा है अपनी सेहत बनाने के लिये
तो कोई दौड़ रहा है मोटापा घटाने के लिये
हर कोई दौड़ रहा है अपने हिस्से की दौड़,
या कुछ पाने के लिये या कुछ गंवाने के लिये
हमें अंधेरों ने इस कदर घेरा कि
उजालों की पहचान ही खो गयी
तक़दीर ने हमें इस कदर मारा कि
अपनों की पहचान ही खो गयी
कोशिशों का हमनें कभी दामन न छोड़ा
पर लगता है हमारी किस्मत ही सो गयी