पहुँचना सभी को है उसी जगह एक दिन,
कोई जल्दी तो कोई देर में पहुँच पाते हैं
सोचता हूँ क्या मिलता है देर करने से,
बस मोह के पाश में जकड़े चले जाते हैं
जिन अपनों के लिये इतनी देर करते हैं,
वो ही बड़ी जल्दी जला कर चले जाते हैं
हर किसी ने चेहरों पर, झूठ के मुखौटे लगा रखे हैं
किसी ने मुस्कराहट, तो किसी ने ग़म सजा रखे हैं
अंदर की असलियत क्या है कोई नहीं जानता,
झांक कर देखें तो कैसे, दिलों पर तो पर्दे लगा रखे हैं
खुद कुछ ना कर पाओ, तो चाहतों को दबाना बेहतर है
अपनों पर भरोसा उठ जाये, तो गैरों का सहारा बेहतर है
अब उम्र नहीं पछताने की,
बस बचे खुचे इस जीवन को ऐसे ही बिताना बेहतर है
उतना ही दूर होना उससे, कि अहमियत का अहसास हो जाये
पर इतना भी दूर मत होना, कि तुम्हारा विश्वास खो जाये
अपने अहमियत के राग को इतना न अलापना यारो,
वो तुम्हारे बिना जीना ही सीख ले, कही ऐसा न हो जाये