बहुत ही जूनून था, हमें लोगों पर दया करने का
खुद को मिटा कर भी, उनका ही भला करने का
समझ न पाये हम उनके #दिल में दबे लावों को,
अफसोस हो रहा है, अब खुद को फ़ना करने का
हम तो लुटाते रहे अपनों पर मोहब्बत बेशुमार,
पर क्या मिला हमको, अपना हक़ अदा करने का
या ख़ुदा न दे घमंड इतना कि आदमी बदल जाये,
और न बचे वक़्त ही, तेरा शुक्रिया अदा करने का
देखा है इन आँखों ने उन बदलते दिलों को,
जिन्हें दे दिया हक़ दौलत ने, कोई ख़ता करने का...
पत्थर की मूर्तियों के लिए जगह है घर में, मगर
माँ बाप के लिए एक कोना भी मयस्सर नहीं !
कुत्तों के लिए मखमल के बिछौने ज़रूरी हैं, मगर
माँ बाप के लिए सादा बिछौना मयस्सर नहीं !
अपने भूखे कुत्तों के लिए बोटियाँ ज़रूरी हैं, मगर
माँ बाप के लिए भर पेट खाना मयस्सर नहीं !
दिखाती थी जिसे चाँद का टुकड़ा बता कर, मगर
उसीके मेहमानों के बीच आना मयस्सर नहीं !
बनाया था ये आशियाना कितने जतन से, मगर
अब अपने ही द्वार पर बैठना मयस्सर नहीं !
जिसको उंगली पकड़ कर चलना सिखाया ,
उसका आज बिल्कुल भी सहारा मयस्सर नहीं !
मुकद्दर लिखने वाले, तूने ये क्या काम कर दिया
तूने दुनिया के सारे #दर्द को, मेरे ही नाम कर दिया #तक़दीर में लिख दिया किसी और का नाम तूने,
और इस #ज़िन्दगी को, किसी और के नाम कर दिया
न समझ सका मैं तेरी बाज़ीगरी आज तक मौला,
तूने अच्छी भली सी ज़िन्दगी को, नाकाम कर दिया
क्या मिलता है तुझको किसी का #दिल दुखा कर,
खुद ही नाम दे कर हमें, फिर क्यों बेनाम कर दिया...
मैं सवालों जवाबों से तंग आ गया हूँ
जज़्बात की चुभन से तंग आ गया हूँ
ज़िन्दगी के फ़साने छोड़ आया हूँ पीछे
मैं ज़माने के कुढंगों से तंग आ गया हूँ
आखिर खुशियों की रंगोली कैसे सजाऊँ
मैं मिलावट के रंगों से तंग आ गया हूँ
कुछ सच्चा नहीं सब दिखावा है दोस्तो
इस फरेबों की दुनिया से तंग आ गया हूँ
खून के रिश्ते भी हैं अपने सफर में मगन
मैं अकेला इन खिज़ाओं से तंग आ गया हूँ