किसी की जान, किसी का ऐतबार थे हम भी,
यारो कितने ही दिलों का, क़रार थे हम भी !
झेला है मुश्किलों का दौर भी हमने जमकर,
फिर भी मोहब्बतों के, तलबगार थे हम भी !

दिल की बेताबियाँ बेचैनियां देती थीं गवाही,
कि किसी की चाहतों में, गिरफ़्तार थे हम भी !
बेमियाद सफर का अंजाम कुछ न था चाहे,
मगर मंज़िल की तलाश में, बेक़रार थे हम भी !

कहाँ से कहाँ पहुंचा दिया रहमतों ने उनकी,
कितनों की कद्रदानी के, कर्ज़दार थे हम भी !
अच्छा है कि खुल गयी असलियत अपनों की,
वरना तो कभी दिल से, तरफदार थे हम भी !!!

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