वक़्त गुज़र कर यूं चला गया,
हम बचपन के हल्ले भूल गये
जहाँ दौड़ दौड़ कर वचपन बीता,
हम वो गली मोहल्ले भूल गये
जिनके साथ ये बचपन गुज़रा,
हमतो उनके भी चेहरे भूल गये
जिस घर में मां की ममता पायी,
हम उस घर के मंज़र भूल गये
महलों की चमक में ऐसे खोये,
अपने मिट्टी के घरोंदे भूल गये
जिस मिट्टी में लोट कर बड़े हुए,
हम उसकी सोंधी खुश्बू भूल गये
भौतिक सुख में कुछ ऐसे डूबे,
हम कुदरत की छटाएं भूल गये
हम ऐसे बसे परदेस में आकर,
अपने घर के ही रस्ते भूल गये...

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