देख लेना एक दिन धर्म के ठेकेदार लुट जाएंगे  !
जो  चमचे  बनकर रहते वह सेवादार लुट जाएंगे !
अगर जवानी टहलने लगी फूलों की महको की तरह
सदर बाजारों के सारे ही सुनियार और लूट जाएंगे !

जब ऐसे ही करती रही समय की सरकारें
महंगाई की चपेट में आकर कई परिवार लूट जाएंगे !
मेंढक यदि खाने लगे कोबरा के सिर को ही
तब घूमने वाली कुर्सी के अधिकार लूट जाएंगे !

क्यों लड़ना मजहब की खातिर जब आपस में एकता नहीं
जो थोड़े बहुत होते सब सत्कार लुट जाएंगे !
बेईमानी जब फैल गई सूर्य की रोशनी जैसे
चंद्र कहलाते खुद को जो इमानदार लुट जाएंगे !

इंसाफ न मिला कोर्ट से कहानियां सब जीवत है
बता दे दिल्ली दर्दी को तेरे कब गुनाहगार लुट जाएंगे !
 

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