न करते यक़ीं सब पर, तो फ़साने कुछ और होते ,
न चुभते तीर अपनों के, तो फ़साने कुछ और होते !
तड़पता रहा ये दिल, न जाने किस किस के किये
न होती गर ये मोहब्बतें ,तो फ़साने कुछ और होते !
इस दौलत की चाहत में, हैवान बन गया ये आदमी
न गिरता इंसान गर इतना, तो फ़साने कुछ और होते !
यारो बजाते रहे हम ढपलियाँ, बस अपने ही राग में
गर मिलती ताल आपस में, तो फ़साने कुछ और होते !
उलझे रहे हमतो बस, इन मुश्किलों के जाल में दोस्त
गर न होते ख़ार गुलशन में, तो फ़साने कुछ और होते !!!

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