झूठी दिलासा से, गम कभी कम नहीं होते,
बाद मरने के भी, ये झंझट कम नहीं होते !
ज़रा रखिये खोल कर अपनी आँखे ज़नाब,
दुश्मनी करने में, अपने भी कम नहीं होते !
लफ़्ज़ों का कितना ही मरहम लगाए कोई,
पर दिल पे लगे ज़ख्म, कभी कम नहीं होते !
चरागों के बुझाने से भला क्या होगा दोस्त,
अंधेरों में छुप जाने से, गुनाह कम नहीं होते !
भले ही सारी ज़ागीर दे दो किसी को दोस्त,
मगर तब भी अरमान उसके, कम नहीं होते !

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