हर ग़म से गुज़रा हूँ, अब खुशियों का इंतज़ार नहीं
अब तक ज़िंदा हूँ मगर, अब जीने की दरकार नहीं
मैं तो मुरझाया फूल हूँ उजड़े हुए चमन का, मगर
चुभन से भर दूँ मैं किसी का दामन, मैं वो खार नहीं
दुनिया के बाजार में तो बिकता है सब कुछ मगर
मैं तो नाकाम चीज़ हूँ ऐसी, कि जिसका खरीदार नहीं
ये मतलब के नाते रिश्ते बड़े क़रीब से देखे हैं मगर
यहां पै किसी के दर्दो ग़म से, किसी को सरोकार नहीं
जानता हूँ कि अतीत के लिए रोना बेमानी है मगर,
क्या करूँ “मिश्र” इस दिल पै, मेरा कोई इख़्तियार नहीं...
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