जिन पर लुटा दीं हमने, बिना हिसाब दौलतें
उन्होंने दो गज़ कफ़न भी, हमें नाप कर दिया
जिन्होंने अब तलक हमें अपने नाम से जाना
उन्होंने बदल कर मेरा नाम, अब लाश कर दिया
बचाते रहे हमेशा जिन्हें, हर तपिश से हर कदम
उन्होंने चंद लम्हों में, जला कर ख़ाक कर दिया
बरकरार थीं सांसें तब तक, अनेकों थे रिश्ते "मिश्र"
पर बाद मरने के सभी ने, गुज़री हुई रात कर दिया

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