कोई तो कुछ पा कर हँसता है,
तो कोई कुछ खो कर रोता है
कोई तो रातों को तारे गिनता,
तो कोई नींद चैन की सोता है
होती है कभी मिलने की खुशी,
तो कभी गम ए जुदाई होता है
कोई मखमल के गद्दों पे, तो
कोई अख़बार बिछाकर सोता है
किसी पर दौलत की कमी नहीं,
तो कोई इक इक पैसे को रोता है
वैसी ही फसल उगती है खेत में,
जो जैसा भी बीज उधर बोता है
यही यथार्थ है जीवन का "मिश्र",
होती है जैसी जिसकी भी नियत,
उसका वैसा ही आचरण होता है
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