गर मुक़र्रर की है सज़ा उसने, तो कोई बात नहीं
उसकी दी हर सज़ा हम सह लेंगे, कोई बात नहीं
हमें ग़म नहीं कि उजाड़ है ज़िंदगी हमारी,
कभी न कभी तो आयेगी बहार, कोई बात नहीं...
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गर मुक़र्रर की है सज़ा उसने, तो कोई बात नहीं
उसकी दी हर सज़ा हम सह लेंगे, कोई बात नहीं
हमें ग़म नहीं कि उजाड़ है ज़िंदगी हमारी,
कभी न कभी तो आयेगी बहार, कोई बात नहीं...