आग तो सूरज उगलता है, पर धरती तड़पती है
गुनाह तो आँखें करती हैं, पर छाती धड़कती है
यही तो फलसफ़ा है इस जमाने का,
कुसूर किसी का, पर दुनिया किसी को पकड़ती है
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गुनाह तो आँखें करती हैं, पर छाती धड़कती है
यही तो फलसफ़ा है इस जमाने का,
कुसूर किसी का, पर दुनिया किसी को पकड़ती है