अब किसी के दुःख में, भला कोंन मरा करता है,
अब किसी के हक़ में, भला कोंन दुआ करता है !

सभी तो दिखते हैं मगन अपने ख़्वाबों ख़यालों में,
जफ़ाओं की दुनिया में, भला कोंन वफ़ा करता है !

इक उम्र गुज़र जाती है अपना आशियाँ बनाने में,
कर देते हैं खाक पल में, भला कोंन दया करता है !

क्यों है वो इतना खुश हमें तो ग़म है सिर्फ इसका,
शामिल किसी के ग़म में, भला कोंन हुआ करता है !

अब तलाशते हैं "मिश्र" सब मंज़िलें अपनी अपनी,
यूं मेहरवाँ किसी और पे, भला कोंन हुआ करता है !

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