बिखरे हैं किस्मत के तार, न जाने कहाँ कहाँ !
भटकते रहे हम तो बेकार, न जाने कहाँ कहाँ !
बदलते रहे रास्ते हमतो मंज़िल की तलाश में,
मगर पहुंचा दिया हर बार, न जाने कहाँ कहाँ !
आये थे इस शहर में कुछ पाने की ललक में,
मगर यूँही होते रहे लाचार, न जाने कहाँ कहाँ !
ज़िन्दगी तो खेल है मगर आसां नहीं है इतना
जीत कर भी मिलती है हार, न जाने कहाँ कहाँ !
मत समझो "मिश्र" दुनिया को फूलों का चमन,
अब तो फैले हैं कांटे बेशुमार, न जाने कहाँ कहाँ !
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