ऐ  ज़िन्दगी मत पूछ, कि कितना करम बाक़ी है,
कितने तूफ़ान आने हैं, और कितना ग़म बाक़ी है !
देखनी है अभी तो अपने परायों की असलियत भी,
कितनों के दिल हैं पत्थर, कितनों में रहम बाक़ी है !
छलती रही है ये दुनिया न जाने कितनी तरह से,
देखना है कि लोगों में अभी, कितनी शरम बाक़ी है !
अरे न कर हौसले पस्त वरना तू कैसे जी सकेगा,
न भूल कि दुनिया में अभी, कुछ तो धरम बाक़ी है !
न उलझ तू बीते ज़माने के उन फसानों से दोस्त,
तेरी ज़िन्दगी का तो अभी, अंतिम कदम बाक़ी है !!!

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