वो अपनी गंवाई नींदों का, कभी हिसाब नहीं रखती
रात भर गीले में सड़ने का, कभी हिसाब नहीं रखती
वो बच्चों का पेट भरती है खुद भूखे रहकर भी,
वो हिस्से में आये दुखों का, कभी हिसाब नहीं रखती
सिर्फ मुट्ठी भर प्यार की दरकार होती है मां को,
वो बच्चों पर लुटाये प्यार का, कभी हिसाब नहीं रखती
वो तो दीवानी होती है सिर्फ बच्चों के प्यार की,
अपने चेहरे पर आई झुर्रियों का, कभी हिसाब नहीं रखती
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