मैं ख़राब हूँ, तो ज़माने को ख़राब कैसे कह दूँ
होश बाक़ी है अब तक, उसे शराब कैसे कह दूँ
मेरे #दिल को पता है अपनी औकात की हद,
फिर उसकी चाहतों को, बेहिसाब कैसे कह दूँ
जिंदगी भर करता रहा गलतियां ही गलतियां,
भला उसके वज़ूद को, यूं लाज़बाब कैसे कह दूँ
ज़िन्दगी तो ख़ुदा की बख़्शी नेमत है,
मैं उसके दिए सामान को, अज़ाब कैसे कह दूँ...

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