देखा हाल गुल का, तो बदहवास हो गया ,
काँटों का दख़ल देखा, मन उदास हो गया !
यूं तो आम था उस राह से गुज़रना अपना,
मगर आज का गुज़रना, तो ख़ास हो गया !
देखा तितलियों को उलझते हुए काँटों से,
अब दुष्टता का हर तरफ ही, वास हो गया !
बुलाया था फूल ने देकर दोस्ती का वास्ता,
मगर फूल भी दुष्ट काँटों का, ख़ास हो गया !
न आता कोई अब किसी की मदद करने ,
दुनिया भी बहरी हो गयी, अहसास हो गया !
न रही अब शराफ़त बेच डाला ईमान भी,
शर्म जो बाक़ी थी, उसका भी नाश हो गया !

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