जब चाहा तो पत्थरों को, भगवान् बना दिया !
जब चाहा तो घर आँगन की, शान बना दिया !
कितना मतलब परस्त है दुनिया का आदमी,
जब मतलब निकल गया, तो अंजान बना दिया !
मुझको हक़ नहीं अब अपनों को राय देने का,
यारो अपने ही घर में मुझे, मेहमान बना दिया !
बड़ी हसरतों से निभाया था हर रिश्ता मगर,
#ज़िन्दगी को इस आदत ने, शमशान बना दिया !
कहने को हम क्या कहें उन बेख़बर लोगों से,
जिन्हें खुद की फ़ितरतों ने, शैतान बना दिया !
गर #मोहब्बत भी करे कोई तो कैसे करे "मिश्र",
उसको भी आज लोगों ने, अहसान बना दिया !!!

Leave a Comment