किसी से बहस करना, मेरी आदत नहीं है
बेकार उलझते फिरना, मेरी आदत नहीं है
यहाँ कैसे जी रहा हूँ कोई मेरे दिल से पूंछे,
मेरी ज़िन्दगी है यारो, कोई सियासत नहीं है
अगर सीधी भी हों राहें तो भी क्या फायदा,
न मिलेगी मंज़िल,गर दिल में ताकत नहीं है
मैं भी चाहता हूँ मोहब्बत की ज़िन्दगी यारो,
मेरी तो यूं भी किसी से, कोई अदावत नहीं है
ज़रा बच के रहना रहनुमाओं के मुखौटों से,
खुदा खैर करे यहां, कुछ भी सलामत नहीं है
बदल चुकी हैं अपने वतन की फ़िज़ाएं यारो,
यहाँ सच कहने की अब तो, इज़ाज़त नहीं है
इस ज़रा सी ज़िंदगी में बवाल कितने हैं,
यहाँ तो मरने के बाद भी, अब मोहलत नहीं है...

Leave a Comment