अपनी धुन में मस्त मुसाफिर, बीता रास्ता भूल गया
क्या छोडा किसको छोडा, सब अपना पराया भूल गया
दुनिया का चलन ही ऐसा है उसका कोई दोष नहीं,
आगे बढने की चाहत में, वो गुज़रा जमाना भूल गया
कैसे लोग थे कैसी बातें कैसी थी लोगों की घातें,
कैसा था मंज़र गालियों का, वचपन के सपने भूल गया
कभी कोंधती होगी बिजली मन में उसकी यादों की,
धुंधला अक्श उभरता होगा, पर लोगों के चेहरे भूल गया
जिन राहों ने मंज़िल बख्सी उनका खयाल नहीं रखा,
उसने तो बस आगे देखा, वो पीछे की कहानी भूल गया

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