हमसे नफरतों का बोझ अब सहा नहीं जाता
हमसे अपनों के फरेबों में अब रहा नहीं जाता
भुगती है उम्र भर बद गुमानियाँ लोगों की
हमसे किसी का मिज़ाज़ अब सहा नहीं जाता
एक मुद्दत गुज़र गयी उजाले की तलाश में
हमसे अंधेरों का ये मंज़र अब सहा नहीं जाता
कैसे जी लेते हैं लोग दुनिया में अकेले अकेले
हमसे तन्हाइयों में रहना अब सहा नहीं जाता
मनाते रहे ताजिंदगी हम रूठे हुओं को ,
हमसे किसी का यूं रूठना अब सहा नहीं जाता...

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