हम उजड़े हुए दिल को, चमन बनाने से डरते हैं
अपने मन के उपवन में, फूल खिलाने से डरते हैं
न जाने कितनों के दिल राख होंगे,
तभी तो अपने दिल में, किसी को बिठाने से डरते हैं
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हम उजड़े हुए दिल को, चमन बनाने से डरते हैं
अपने मन के उपवन में, फूल खिलाने से डरते हैं
न जाने कितनों के दिल राख होंगे,
तभी तो अपने दिल में, किसी को बिठाने से डरते हैं