तक़दीर ने मदारी की तरह नचा दिया हमको
फिर फिर उठा के फिर फिर गिरा दिया हमको
हम तो किसी को ना भुला पाये आज तक,
पर खुदगर्ज़ दुनिया ने यूं ही भुला दिया हमको
जिसके लिये अपनी हस्ती मिटा दी हमने,
उसी बेदर्द बेवफा ने जी भर रुला दिया हमको
कभी नींद नहीं आती थी नरम गद्दों पर भी,
पर इस मुकद्दर ने ज़मीं पर सुला दिया हमको...

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