तकते तकते राह तेरी, यारा शाम हो गयी
आँखों की रौशनी भी, अब तमाम हो गयी
न दिखी कोई मूरत हमें, दूर दूर तलक भी,
मुफ्त में अपनी मोहब्बत, बदनाम हो गयी
लोग हँसते रहे देख कर, यूं तड़पना हमारा,
पर ये ज़िन्दगी फिर भी, तेरे नाम हो गयी
अभी सताना है कितना, बस बता दे इतना,
अब तो ये जुबाँ भी हमारी, बेजुबान हो गयी
हम भी जानते थे कि, मोहब्बत खेल नहीं है,
न जाने कितनों की ज़िंदगी, क़ुर्बान हो गयी
यादों के पन्ने ही, बस पलटते रह गए,
पर उधर उल्फ़त की बगिया, वीरान हो गयी

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