न बसाते दिल में किसी को, तो अच्छा होता !
न बताते राज़े दिल किसी को, तो अच्छा होता !

जब वक़्त बदला तो फेर लीं निगाहें यारों ने ,
न समझते अपना किसी को, तो अच्छा होता !

तल्खियों की बाढ़ में बह गए सब नाते रिश्ते,
न थमाते उँगलियाँ किसी को ,तो अच्छा होता !

करते हैं वार पीछे से वो हमारे यार बन कर ,
हम न लगाते गले किसी को, तो अच्छा होता !

बेहूदियों की हद तक बिगाड़ा महफ़िल को ,
यारो न बुलाते हम किसी को ,तो अच्छा होता !

लोग तो लिए फिरते हैं नमक अपने हाथों में ,
न दिखाते ये ज़ख्म किसी को, तो अच्छा होता !

औरों पे यक़ीन कर हम तो फंसते रहे "मिश्र",
यारा न परखते हम किसी को, तो अच्छा होता !!!

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