हम ज़फाओं में बस उसकी, वफ़ा खोजते रहे,
हम तो शोलों में शबनम का, मज़ा खोजते रहे !
लोग पी कर भूल जाते हैं, अपना भी घर मगर,
हम तो नशे में भी उसका ही, पता खोजते रहे !
न छोड़ा कोई भी दाव उसने, गिराने का हमको,
मगर हम तो उसकी चालों में, अदा खोजते रहे !
इस कदर बदल जाने का, न मिला सबब हमको,
मगर रात दिन हम तो अपनी, ख़ता खोजते रहे !
निकाल फेंका दिल से हमें, कूड़ा समझ के,
पर हम थे कि उसमें भी यारो, नफ़ा खोजते रहे !
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