मेहरवानी अय वक़्त, तूने रहना सिखा दिया ,
दुनिया के सारे ग़म, तूने सहना सिखा दिया !
आसान कर दी, अपने परायों की परख तूने,
जो था लबों पर मेरे, तूने कहना सिखा दिया !
कूप मंडूक थे, न पता था बाहर का मिज़ाज़,
मिल के साथ राहों में, तूने चलना सिखा दिया !
लगाते थे तक तक कर, निशाने मुझ पे लोग,
इक बता के नया हुनर, तूने बचना सिखा दिया !
इबारत भोले चेहरों की, न समझ पाए हम,
शुक्रिया अय वक़्त कि, तूने पढ़ना सिखा दिया !

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